सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
प्राचीन समय की बात है आवाँ कस्बे में एक महिला माँ दुधिया खेड़ी भानपुरा माताजी को जाती थी।
उस महिला के कोई पुत्र नहीं था, इसी कारण वह हर महिने दर्शन करने हेतु पैदल ही निकल जाती कुछ
समय व्यतीत होने के उपरान्त उसे एक पुत्र की प्राप्त होती है। तो उस महिला ने दुर्गा माँ जगदम्बा से प्रार्थना
की माँ अब मैं नहीं आ सकती इसी कारण अब आप मेरे साथ ही चले। इतना कहते ही माँ प्रकट हुई और माँ
ने उसे कहा कि मैं तुम्हारे साथ चल चलूंगी पर मेरी एक शर्त है मुझे कहीं भी नीचे मत रखना वरना मैं वहीं रह
जाऊँगी। ठीक है यह कह कर महिला ने माता की मूर्ति को एक तगारी में रख कर सिर पर रखा और वहां से
पैदल ही चल निकली, चलते चलते वह आ रही कर्णवास (कनवास) के जंगल को पार ही किया था कि उसके
बच्चे की रोने की आवाज आई उसने कुछ देर तक नजर अंदाज किया और फिर आगे बढ़ी और माधोपुर से
जालिमपुरा के जंगल को भी पार किया परन्तु उसके बच्चे की रोने की आवाज और तेज होने लगी। भूख के
कारण बच्चे की ये दशा एक माँ को देखी ना गई उसने सोचा थोड़ी देर रुकते है और दैनिक दिनचर्या से
निवृत होकर बच्चे को भी दूध पिला लेगें और अब यहाँ से आवां भी थोड़ी ही दूरी पर है। अगर माँ अम्बे यहीं
रह भी जायेगी तो मैं यहाँ पर पैदल ही आ जाऊँगी क्योंकि जालिमपुरा रोड़ से आवां की दूरी मात्र 2-3
किलोमीटर ही है। यह सोच कर उसने माँ अम्बे की मूर्ति वाली तगारी को नीचे रखा और बच्चे को दूध पिला
कर उसकी भूख शांत की और थोड़ी देर विश्राम करने के बाद उसने सोचा अब आगे बढ़ते हैं। जैसे ही उसने
उस मूर्ति वाली तगारी को उठाया माँ अम्बे वहां से हिली भी नहीं वहीं की वहीं रह गई और जब से ही माता
अम्बे वहीं मेहंदी के पेड़ों में विराजमान हो गई और उसकी महिमा-कीर्ति चारों और फैल गई। और जब से
आज तक माँ दूधियाखेड़ी धाम पर अनेक दुखियालु श्रृद्धालु माँ के पास आते जाते हैं यहां पर हर शनिवार
माता के श्रृद्धालुओं के लिए भंडारा समिति का निर्माण 2012 में संरक्षण श्रीमान किशन गोपाल जी नागर व
सावनभादों वालों की तरफ से हुआ। यहां भंडारा माता की आरती सायं 7 बजे के बाद ही शुरु हो जाता है।
इस भंडारे में हर शनिवार 1500 से 2000 श्रृद्धालु निःशुल्क (प्रसादी) भोजन निरंतर 11 वर्षों से करते आ रहे
हैं। श्रीमान हेमराज जी गुर्जर व रमेश जी कुमावत सावनभादौं,
और संरक्षक श्रीमान किशन गोपाल जी नागर सावनभादौं द्वारा माता का वार्षिक उत्सव हर वर्ष 21
दिसम्बर को माता भव्य भगवती जागरण किया जाता है व साथ ही 22 दिसम्बर को हर साल यहां पर धूलेट
कनवास, हिंगोनिया, जालिमपुरा, दरा, माधोपुर, देवली चारों दिशाओं से शोभायात्रा का आयोजन किया जाता
है। माँ दुधिया खैड़ी स्थल 22 दिसम्बर को एक तरह से विशाल मेले में परिवर्तित हो जाता है। इस शोभायात्रा
में आकर्षक झांकियां डी.जे. अनेक क्षेत्रों से बैण्ड बाजे, अनेक तोरण द्वार श्रृद्धालुओं के स्वागत के लिए फूलों
की वर्षा, चाय पानी नाश्ते की व्यवस्था की जाती है और अंत में सभी श्रृद्धालु नाचते गाते माँ दूधियाखेड़ी धाम
आते हैं और दर्शन करने के उपरान्त लगभग 1 से 1.50 लाख श्रृद्धालु भोजन (प्रसाद) ग्रहण करते हैं।
हर वर्ष की भांति यहाँ पर माघ माह सप्तमी (फरवरी) में मेले का आयोजन भी रखा जाता है जो कि
15-20 दिनों तक निरंतर चलता है। इस मेले में आकर्षण का केन्द्र बड़े झूले, डोलर, चकरी, मौत का कुआं
अलग-अलग वस्तुओं के मार्केट (बाजार) प्रमुख होते हैं।
माँ दूधियाखेड़ी धाम के आसपास बहुत से दर्शनीय स्थल भी है। जैसे:- आवां का प्राचीन बद्रीविशाल
मन्दिर, नील कण्ठ महादेव, त्रिवेणी धाम, सारणेश्वर महादेव मन्दिर, कर्णेश्वर महादेव मन्दिर कनवास, किशोर
सागर हनुमान मन्दिर व तालाब, सावनभादौ डेम जो एक मात्र राजस्थान का दूसरे नम्बर का मिट्टी का बना
हुआ डेम है। काला जी-गोरा जी, मुकंदरा अभ्यारण के समीप स्थित है।